
बीकानेर। पश्चिमी राजस्थान के लिए जीवनदायनी कहीं जाने वाली इंदिरा गांधी नहर परियोजना में कमजोर मानसून और भाखड़ा नांगल डैम में जल स्तर घटने के चलते पंजाब-श्रीगंगानगर के हिस्से में पड़ने वाली नहर के रिलाइनिंग के काम के चलते नहरबंदी ने अब जिले के किसानों के अलावा चूरू, नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर के आसपास के ग्रामीणो की चिंता बढ़ा दी हैं। दरअसल भाखड़ा नांगल, पोंग डैम इ.गा.न.प. नहर के किसानों में सिंचाई पानी की मांग को लेकर आंदोलन की सुगबुगाहट एक बार फिर से तेज हो गई है। बीकानेर के सिंचित क्षेत्र में सिंचाई पानी की मांग को लेकर किसानों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। गेहूं और जौ की फसल को बचाने के लिए किसान पानी की दो बारी मांग रहे हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से फरवरी से केवल पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है।
संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में किसानों ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो आगामी 10 फरवरी को घड़साना उपखंड कार्यालय का घेराव किया जाएगा। जिसमे बीकानेर जिले के खाजूवाला, बज्जू,पूगल लूणकरणसर छतरगढ़ के किसान शामिल होंगे। किसान नेताओं का कहना है कि अगर हमें समय पर सिंचाई का पानी नहीं मिला, तो हमारी फसलें बर्बाद हो जाएंगी। हम शांतिपूर्ण तरीके से प्रशासन को चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन अगर हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो मजबूरन हमें उग्र आंदोलन करना पड़ेगा।
खाजूवाला, इ.गा.न.प. के अंतिम छोर पर बसे खाजूवाला क्षेत्र में भी सिंचाई पानी की मांग को लेकर आंदोलन की सुगबुगाहट एक बार फिर से तेज हो गई है। 16 साल पहले 27 अक्टूबर 2004 को खाजूवाला, रावला व घड़साना क्षेत्र में सिंचाई पानी की मांग को लेकर एक बहुत बड़ा आंदोलन हुआ था। जो किसान आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस किसान आंदोलन ने सरकार तक को हिला दिया था। करीब 2 माह तक चले इस आंदोलन में खाजूवाला, रावला व घड़साना में 10 दिन तक कर्फ्यू भी लगा था। आज 16 साल बाद इस क्षेत्र में एक बार फिर किसानों को सिंचाई पानी की कमी हो रही है। इस क्षेत्र के किसानों को प्रत्येक साल की नवंबर व दिसंबर में पानी की मांग को लेकर किसान आंदोलन भी झेलना पड़ता है। जिसमें कई बार राजनीतिक पार्टियों के नेता किसानों को गुमराह कर लेते हैं। लेकिन आज से 16 साल पहले 2004 में बिना कोई राजनीतिक पार्टी के सिर्फ किसानों के नेतृत्व में यह आंदोलन हुआ था। हालांकि उस समय कामरेडो का इस क्षेत्र में बोलबाला था। उस समय सिर्फ किसान, मजदूर और व्यापारी अपने पेट की रोजी रोटी के लिए सड़कों पर उतरा था। किसान मजदूर व्यापारी संघर्ष समिति के नेतृत्व में यह आंदोलन हुआ था और देखते ही देखते आंदोलन ने एक बड़ा रूप ले लिया। जिसमें 7 किसान सिंचाई पानी की मांग करते हुए शहीद भी हुए थे।अब देखना यह होगा कि प्रशासन किसानों की इस मांग पर क्या निर्णय लेता है। अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।