
बीकानेर। झालावाड़ जिले के पिपलोदी राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की बिल्डिंग का हिस्सा भरभराकर गिर गया। इसमें 35 बच्चे थे 21 घायल हो गए जबकि 7 छात्रो की मलबे में दब कर मौत हो गई। इस घटना ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था की खस्ताहाल स्थिति और जिम्मेदार विभागों की लापरवाही को उजागर कर दिया है। विभागीय जांच रिपोर्ट में ग्राम पंचायत पर ठीकरा फोड़ते हुए शिक्षा विभाग ने खुद को “निर्दोष” बताया है, जबकि वर्षों से चली आ रही निरीक्षण व्यवस्था और जर्जर भवनों की अनदेखी को नजरअंदाज कर दिया गया।
*शिक्षा विभाग ने खुद को बताया सुरक्षित, दोष ग्राम पंचायत पर*
ब्लॉक शिक्षा अधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस कमरे की छत गिरी, वह वर्ष 1994 में ग्राम पंचायत द्वारा बनवाया गया था। जबकि 2011 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत बना कक्ष आज भी पूरी तरह सुरक्षित है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि स्कूल स्टाफ ने कभी भवन की जर्जर स्थिति को लेकर न तो कोई सूचना दी और न ही मरम्मत का प्रस्ताव भेजा।
*क्या हुआ था नियमित निरीक्षण? जवाब अभी अधूरा*
राज्य शिक्षा विभाग के नियमानुसार, अधिकारियों को हर महीने तय स्कूलों का निरीक्षण करना होता है और इसकी रिपोर्ट ऑनलाइन निदेशालय तक पहुंचती है। सवाल यह है कि क्या पिपलोदी स्कूल का कभी निरीक्षण हुआ? अगर हुआ, तो जर्जर भवन की स्थिति की जानकारी क्यों नहीं दी गई? और अगर नहीं हुआ, तो निरीक्षण तंत्र सिर्फ दस्तावेजों तक क्यों सीमित रहा?
*छत गिरने का दूसरा कारण: अतिवृष्टि*
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लगातार बारिश से भवन की पिछली दीवार की नींव कमजोर हो गई थी। लेकिन रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि पानी कितने दिनों से जमा था और शिक्षकों ने इस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। हादसे के समय सुबह 7:40 बजे कक्षा 6 और 7 के छात्र प्रार्थना सभा के लिए उसी कक्ष में मौजूद थे, जब अचानक छत भरभराकर गिर गई।
*मरम्मत प्रक्रिया जटिल, पहल की ज़िम्मेदारी स्कूल पर*
मरम्मत का प्रस्ताव स्कूल हेडमास्टर द्वारा तैयार कर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को भेजा जाता है। इसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी के माध्यम से प्रस्ताव समग्र शिक्षा अभियान तक पहुंचता है। लेकिन यह प्रक्रिया तभी शुरू होती है जब स्कूल की ओर से पहल हो, जो अक्सर लापरवाही की भेंट चढ़ जाती है।
*हादसे के बाद एक्शन में आया शिक्षा विभाग*
हादसे के बाद शनिवार को प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा निदेशक सीताराम जाट ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सभी जिला शिक्षा अधिकारियों से जर्जर स्कूलों की रिपोर्ट मांगी और मरम्मत के प्रस्ताव भी तलब किए हैं।
ऐसे तय होता है मरम्मत का बजट
प्रस्ताव प्रक्रिया: हेडमास्टर → बीईओ → सीबीईओ → जिला शिक्षा अधिकारी → समग्र शिक्षा अभियान
निरीक्षण:विभाग में नियुक्त जेईएन स्कूल का निरीक्षण करता है और मरम्मत या ध्वस्तीकरण की अनुशंसा करता है।
वैकल्पिक स्रोत: विधायक, सांसद और मुख्यमंत्री कोटे से राशि स्वीकृत की जा सकती है। ये राशि जिला परिषद के माध्यम से सार्वजनिक निर्माण विभाग या अन्य एजेंसियों से खर्च कराई जाती है।शिक्षा विभाग में जेईएन,एईएन,एक्स ईएन जैसे इंजीनियरिंग पद हैं, फिर भी कोई अधिकारी स्कूल भवनों का स्वतः निरीक्षण नहीं करता। केवल प्रस्ताव आने पर ही कार्रवाई की जाती है, जिससे गंभीर हालात में भी समय रहते हस्तक्षेप नहीं हो पाता।पिपलोदी में छत गिरने की घटना कोई एकमात्र घटना नहीं, बल्कि सिस्टम की समूची असफलता का प्रतीक है। जब तक स्कूल भवनों की नियमित जांच, रिपोर्टिंग और जिम्मेदारी तय नहीं की जाएगी, तब तक “अतिवृष्टि” जैसे कारणों की आड़ में लापरवाही छुपाई जाती रहेगी।