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बीकानेर: डॉक्टर्स की सूझबूझ 400 किमी की दौड़, 10 घंटे का ऑपरेशन,बच्ची का कटा हाथ फिर से जोड़ा गया

बीकानेर: डॉक्टर्स की सूझबूझ 400 किमी की दौड़, 10 घंटे का ऑपरेशन,बच्ची का कटा हाथ फिर से जोड़ा गया

बीकानेर। जिले के खाजूवाला क्षेत्र से एक ऐसी प्रेरणादायक और चमत्कारी घटना सामने आई है, जो न सिर्फ चिकित्सा विज्ञान की ताकत दिखाती है, बल्कि समय पर लिए गए फैसलों, इंसानी हिम्मत और समर्पित प्रयासों का भी अद्भुत उदाहरण है।मामला खाजूवाला के गांव माधोडिग्गी चक 14 डीकेड़ी का है, जहाँ 13 वर्षीय प्रियांशु मेघवाल चारा काटने वाली कुट्टी मशीन से काम कर रही थी। अचानक उसका हाथ मशीन में चला गया और पंजा कटकर शरीर से पूरी तरह अलग हो गया। यह हादसा 29 जून की शाम करीब 5:30 बजे हुआ।हादसे के तुरंत बाद परिवार ने घबराने की बजाय हिम्मत दिखाई। प्रियांशु को लेकर सीधे खाजूवाला के उप जिला अस्पताल पहुंचे, जहां डॉक्टर पूनाराम रोझ ने तत्परता दिखाते हुए एक पल भी गंवाए बिना कटा हुआ पंजा आइसबॉक्स में डालकर चारों तरफ बर्फ से सुरक्षित कर दिया। यही सही कदम, सही समय पर उठाया गया पहला निर्णायक मोड़ था।

डॉ. पूनाराम ने तुरंत बच्ची को जोधपुर एम्स रेफर कर दिया। परिवार ने प्राइवेट 108 एंबुलेंस की मदद ली और ड्राइवर ईमाम हुसैन की तत्परता ने एक और चमत्कार कर दिखाया – 400 किलोमीटर का सफर महज 4.5 घंटे में तय किया गया, वह भी भारतमाला रोड जैसे लंबे रूट से।जोधपुर एम्स में प्रियांशु को तुरंत ऑपरेशन थियेटर में शिफ्ट किया गया। दो विशेषज्ञ सर्जनों की टीम ने दस घंटे तक माइक्रो सर्जरी के ज़रिए पंजे को फिर से जोड़ने का कार्य किया। यह बेहद संवेदनशील और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया थी, क्योंकि हाथ की सूक्ष्म रक्त नलिकाएं और नसें माइक्रोस्कोप की सहायता से जोड़ी जाती हैं।सर्जरी के बाद 1 जुलाई को प्रियांशु के हाथ में हरकत देखी गई जो इस पूरे संघर्ष और ऑपरेशन की सफलता का संकेत था। अब बच्ची को डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है, और अगले एक हफ्ते तक हाथ की प्रतिक्रिया को देखा जाएगा।डॉ. पूनाराम रोझ के अनुसार यदि कटा हुआ अंग 6 घंटे के भीतर सही तापमान और स्थिति में अस्पताल पहुंच जाए, तो उसे जोड़ने की 80 से 90 प्रतिशत तक संभावना रहती है। यही हुआ भी समय पर मेडिकल रिस्पॉन्स, सड़क मार्ग से तेज़ी, और एम्स की विशेषज्ञता ने मिलकर असंभव को संभव बना दिया।

यह घटना न सिर्फ प्रियांशु और उसके परिवार के लिए एक राहत है, बल्कि पूरे राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में एक जागरूकता संदेश भी है कि वक्त पर सही कदम, सूझबूझ और मेडिकल विज्ञान की मदद से जान और अंग दोनों बचाए जा सकते हैं।

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